प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किस प्रकार होता है?
जब हमारा शरीर किसी रोग या वायरस से संक्रमित होता है, तो हमारे शरीर का आंतरिक प्रतिरक्षा तंत्र उस रोग को दूर करने की कोशिश करने लगता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे चोट लगने पर खून को बहने से रोकने के लिए हमारा शरीर खून का थक्का जमा देता है।
जुखाम होने पर भी आपने कई परिजनों को कहते सुना होगा कि दवाई मत लो, जुखाम को निकल जाने दो। असल में जुखाम निकलता नहीं है। जुखाम का जो वायरस होता है, हमारा शरीर उस वायरस का एंटीबॉडीज बना लेता है। वह एंटीबॉडी जुखाम के वायरस को खत्म कर देता है।
इसका बहुत बड़ा फायदा यह होता है कि वह एंटीबॉडी हमारे शरीर में बहुत समय तक रहते हैं, जो बाद में भी जुखाम होने को रोकते हैं। इसलिए अक्सर ऐसा होता है कि अगर आप दवाई खा कर जुखाम को ठीक करते हैं, तो वह फिर से हो जाता है और अगर आप ऐसे ही ठीक होने देते हैं, तो फिर जल्दी जुखाम नहीं होता।
कोरोना वायरस के केस में भी प्लाज्मा थेरेपी का इसी प्रकार इस्तेमाल होता है। जो व्यक्ति कोरोना से संक्रमित हो चुका है उसके शरीर में कोरोना वायरस के एंटीबॉडी बनना शुरू हो जाते है। अगर व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी है तो यह एंटीबॉडी बहुत जल्दी बनते हैं और वह कोरोना वायरस को खत्म कर देते हैं और व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है।
इस तरह से स्वस्थ हुए व्यक्ति के शरीर में कोरोना वायरस के एंटीबॉडीज मौजूद रहते हैं। उसके खून से इन एंटीबॉडीज को निकालकर दूसरे संक्रमित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कराया जाता है। इस तरह से एंटीबॉडीज देने से संक्रमित व्यक्ति के शरीर में एंटीबॉडीज बनने की प्रक्रिया तेज हो जाती है और वह कोरोना वायरस को खत्म कर देती है।
कोरोना वायरस में कितनी कारगर है, प्लाज्मा थेरेपी ?
हमारे देश ही नहीं अमेरिका और चीन जैसे कई देश यह दावा कर रहे हैं कि प्लाज्मा थेरेपी से बहुत से कोरोना संक्रमित व्यक्तियों का इलाज हुआ है और यह थेरेपी अच्छे परिणाम दे रही है। लेकिन इसकी अभी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। अभी कुछ दिन पहले ही हमने न्यूज़ में देखा था कि हमारे प्लाज्मा थेरेपी का पहला मरीज जीवित नहीं बच पाया है। यह थेरेपी अभी भी परीक्षण स्तर पर ही है। अभी तक यह भी सुनिश्चित नहीं हो पाया है कि संक्रमित व्यक्ति को एंटीबॉडीज की कितनी मात्रा कारगर होगी।
मेरा व्यक्तिगत विचार-:
मेरा ऐसा मानना है कि प्लाज्मा थेरेपी में भी संक्रमित व्यक्ति के शरीर में ही एंटीबॉडीज बनाने की क्रिया को तेज किया जाता है। यह कोरोनावायरस की कोई दवाई नहीं है। ऐसे में अगर संक्रमित व्यक्ति का प्रतिरोधक तंत्र बहुत कमजोर होगा तो एंटीबॉडीज देने के बाद भी उतनी तेजी से और ज्यादा एंटीबॉडीज उत्पन्न नहीं कर पाएगा, जितनी तेजी से कोरोना वायरस फैलता है। नतीजा यह होगा कि कोरोनावायरस शरीर में फैल जाएगा और व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।
इसके अलावा जिन व्यक्तियों के प्लाज्मा को इलाज में इस्तेमाल किया जा रहा है, अगर उनमें कोई दूसरी बीमारी है तो वह भी संक्रमित व्यक्ति मैं स्थानांतरित हो सकती है। जिससे संक्रमित व्यक्ति का प्रतिरक्षा तंत्र विपरीत रूप से काम कर सकता है और खतरा और बढ़ सकता है।
मेरा विचार है कि जिन व्यक्तियों का डीएनए ज्यादा मिलता जुलता है, उन व्यक्तियों के लिए प्लाज्मा थेरेपी ज्यादा कारगर सिद्ध हो सकती है। क्योंकि ऐसे ज्यादातर व्यक्तियों का प्रतिरक्षा तंत्र समान तरीके से काम करता है। अतः एक ही परिवार, खानदान या उनके रिश्तेदारों के लिए प्लाज्मा थेरेपी ज्यादा कारगर सिद्ध हो सकती है।
मैं आपको बता दूं कि मैं कोई डॉक्टर नहीं हूं और ना ही चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़ा हुआ कोई व्यक्ति हूं। मैंने जो कुछ भी लिखा है, वह अपने व्यक्तिगत अध्ययन के माध्यम से प्राप्त अनुभव के आधार पर है। मेरा मकसद केवल आप तक जानकारी पहुंचाना है।