यूं बे तक्कलुफ से उनका जुल्फे झटकाना
जालिम नजर का भी उसी वक्त उन पर आना
सांस थम सी गयी, धड़कने रूक गई
उनकी कातिल अदा पर फिदा हो गया ।।
ऱाह भटका या मन्जिल मिल गई
मुरझाया फूल या कली खिल गई
आलम ये दिल का समझता मै कैसे
दिल दिमाग से जब जुदा हो गया ।।
जिसके दीदार को नैन तरसा करे
लब दुआ मागे दिल सजदा करे
आस मुलाकात की अब मिटती नही
वो मेरे लिए अब खुदा हो गया।।
वो बिन्दिया, वो कंगल, वो कानों की बाली
वो चेहरे की हंसी वो होंठों की लाली
जो तिरछी नजर से यू देखा मुझे प्यार से
कर्ज सदियों का जैसे अदा हो गया ।।