भूल-भुलैया-जानकर आप भी यकीन नही करोगे

भूल-भुलैया-जानकर आप भी यकीन नही करोगे

 बचपन में जब मैं छोटा था तो मेरे साथ बहुत सारी अजीब घटनाएं घटित हुई हैं। कुछ घटनाएं तो मैनें अपनी मम्मी के साथ साझा की लेकिन अधिकतर इसलिए किसी को नहीं बताई कि लोग विश्वास नहीं करेंगे और मेरा मजाक उड़ायेंगे।

भूल-भुलैया-जानकर आप भी यकीन नही करोगे


गांव में मेरे घर से लगभग आधा किलोमीटर पर मेरा खलिहान है जहाँ पर एक कुआं है, एक बड़ा सा आम का पेड़ है और कारस देव बब्बा का एक छोटा सा मंदिर है। गांव और आसपास के सब लोग इस जगह को गंगासागर के नाम से जानते हैं।

गंगासागर पर एक झोपड़ी हुआ करती थी जिसमें मेरी बाई (मेरी परदादी) रहा करती थी। यही पर हमारे गाय, भैस आदि बंधे रहते थे। रोज सुबह हम घर के सारे बच्चे गंगासागर पर ही चाय पीते थे जो हमारी बाई (परदादी) बनाती थी। दोपहर और रात में मैं, मेरे दादा जी या हम दोनो बाई के लिए घर से खाना लेकर आते थे। 


एक दिन दोपहर में मम्मी ने बाई के लिए खाना बांधा। मैं खाना ले जा ही रहा था कि राजकुमार चाचा ने बोला कि खाना देकर जल्दी आना, आज दोपहर में घर पर ही रहूंगा तो तुम लोगों को पढ़ाऊंगा। मैं 'ठीक है' बोलकर खाना लेकर गंगा सागर के लिए निकल गया। वहाँ मेंनें बाई को खाना दिया और वापस घर के लिए निकल रहा था तो सोचा कि मैन रोड की तरफ से चलते हैं। 

मैं अपने खलिहान (गंगासागर) के पीछे की तरफ से निकल कर रोड पर पहुंच गया। वहाँ से घर जाने के लिए सीधा रोड ही था। मैं सीधा चलता रहा और चलते-चलते वापस गंगासागर पर ही पहुंच गया। 

हमारा गांव इतना छोटा सा है कि गंगासागर से घर का रास्ता भूलनें का सवाल ही नहीं होता है। बिलकुल सीधा तो रास्ता है। 

बाई ने पूछा -क्या हुआ बेटा वापस क्यो आ गए?? 

मेंने बोला -कुछ नहीं, कुछ सामान छूट गया था उसे लेकर जा रहा हूँ। 

मैं फिर से निकल पड़ा घर की ओर, इस बार पूरे होशोहवास में था। चलता गया, चलता गया, लेकिन ये क्या, फिर से गंगासागर पहुंच गया। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है। 

मैं फिर से निकला, इस बार चलते-चलते मैन रोड़ की पुलिया के पास रुका और ठीक से घर की तरफ वाले रास्ते को देखकर आगे बढ़ा। कुछ दूर चला कि फिरसे गंगासागर पर पहुंच गया। अब मेरा दिमाग पूरी तरह से खराब हो चुका था। 

मैं अबकी बार निकला और निकल कर पुलिया पर पहुंच कर रुक गया। वहाँ पास में एक कुम्हार कक्का खड़े थे। उनसे पूँछा कि कक्का मुझे मेरे घर जानें के लिए कौन से रास्ते से जाना है? उन्होंने हाथ से इशारा करके घर का रास्ता बता दिया। मैं उस रास्ते पर निकल पड़ा। थोड़ा चलने के बाद जब मैंने देखा कि मैं फिर से गंगासागर पर ही पहुंच गया हूं तो मेरे आंसू निकल आए और मैं रोने लगा।

यह क्या हो रहा था, क्यों हो रहा था, मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।

मैं एक बार फिर से मुड़ा लेकिन इस बार मैं रोड के रास्ते पर से ना जाकर घर के सीधे रास्ते से घर के लिए निकला। इस रास्ते से सामने देवी माता का मंदिर (जिसे सब लोग माता की मडिया बोलते हैं) दिखता है। मैं उस मंदिर को देखते-देखते ही आगे बढ़ रहा था लेकिन हद तो तब हो गई जब मैं माता के मंदिर की जगह गंगासागर के कारस देव के मंदिर पहुंच गया। 

हताश होकर में बाई के पास जाकर बैठ गया। मैं इतने चक्कर लगा चुका था कि इस छोटे से रास्ते के चक्कर लगाते लगाते ही दोपहर से शाम हो गई थी।

 गंगासागर पर ही हमारा एक कुत्ता रहता था, नाम था-कबरा। मैंने कबरा के सिर पर हाथ फेरा और उससे बोला कि अब चल तू छोड़कर आएगा मेरे को घर तक।कबरा ने घर की रस्ता देखी हुई थी। मैं उसको आवाज देता गया, वह आवाज सुनकर मेरे आगे-आगे चलता रहा और मैं उसके पीछे-पीछे चलता रहा। इस बार जब घर पहुंचा तब मेरी जान में जान आई।

 घर पर सामने राजकुमार चाचा खड़े थे। मैंने उनको बताया कि मैं रास्ता भटक गया था तो उनको बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ क्योंकि गंगासागर से घर का बिल्कुल सीधा रास्ता है, वह भी सिर्फ 500 मीटर का। उन्हें लगा कि यह कहीं पर खेलने में लग गया था और पढ़ाई का बोल दिया था इसलिए नहीं आया। फिर तो मेरी जो पिटाई हुई वह मुझे ही पता है। 


मेरी उम्र उस समय 9 वर्ष के करीब रही होगी। मुझे पता है  कि कई लोगों को यकीन भी नही होगा। लेकिन ये बिल्कुल सच्ची घटना है जो मेरे साथ सच में हुआ है। अब जब याद करता हूँ तो मैं भी यही सोचता हूँ कि ये सब कैसे हुआ होगा?  

Shree Gangasagar

नमस्कार दोस्तों, मेरा नाम है सत्येंद्र सिंह founder of ShreeGangasagar.com

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