असली च्यवनप्राश बनाने वाले च्यवन ऋषि की प्रेरणादायक कहानी

असली च्यवनप्राश बनाने वाले च्यवन ऋषि की प्रेरणादायक कहानी

         एक च्यवन नाम के ऋषि थे जिन्होंने जड़ी-बुटियों से 'च्यवनप्राश' नामक एक ऐसी औषधि बनाई थी जिसके सेवन करने से वे वृद्धावस्था से यौवन में लौट आए थे। वे इतने तपस्वी और शक्तिशाली थे कि इन्द्र के वज्र को भी रोक सकते थे। ऋषि च्यवन की इसी च्यवनप्राश औषधि के नाम पर आज बाजार में दुनियाभर के च्यवनप्राश भरे पड़े हैं जो युवावस्था जैसी चुस्ती-फुर्ती लौटाने का दावा करते हैं। तो आइऐ जानते हैं च्यवनप्राश के असली खोजकर्ता महर्षी च्यवन की कहानी।

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च्यवन ऋषि की कहानी

       महाभारत के अनुसार, महर्षी च्यवन, भृगु मुनि के पुत्र थे। वे सत्ययुग के अत्यन्त ही तपस्वी ऋषि थे। एक बार वे गंगा के तट पर तप करने बैठे और समाधिस्थ होकर कई वर्ष तक तपस्या रहे। उनके बिना हिले डुले बहुत समय तक एक ही जगह बैठे रहने से उनका शरीर दीमक और मिट्टी से ढक गया। लता-पत्तों ने उनके चारों तरफ के स्थान को ढँक लिया।

       एक समय राजा शर्याति अपनी रानियों, रूपवती पुत्री सुकन्या और अपनी सेना के साथ गंगा स्नान के लिए इस वन में आये। जब राजा गंगास्नान कर रहे तो तो उनकी पुत्री सुकन्या अपनी सहेलियों के साथ घूमते हुये दीमक की मिट्टी एवं लता-पत्तों से ढँके हुये तप करते च्यवन के पास पहुँच गई। उसने देखा कि दीमक-मिट्टी के टीले में दो गोल-गोल छिद्र कुछ दिव्य चमक दिखाई पड़ रही हैं। सुकन्या ने कौतूहलवश पास में पड़े कांटे उठाकर उन छिद्रों में काँटे गड़ा दिये। काँटों के गड़ते ही जो ज्योति दिख रही थी वो बुछ गई और उन छिद्रों से रुधिर बहने लगा। जिसे देखकर सुकन्या भयभीत हो गई और वहाँ से चली गई। छिद्रों में जो ज्योति दिखाई दे रही थी वो वास्तव में च्यवन ऋषि की आँखें थीं।

च्यवन ऋषि की आँखों में कुश घुसाती हुई सुकन्या


      यहाँ जब राजा शर्याति गंगास्नान से निवृत हुए तो अचानक से उनकी सेना मे कोलाहल मच गया। शर्याति की सेना का मल-मूत्र रुक जाने से वो सब व्याकुल हो रहे थे। राजा जानते थे कि यह च्यवन मुनि का आश्रम है और जरूर किसी से कोई अपराध हुआ है। जब उन्होने सब से पूछा कि किसी ने कुछ गलत काम या अपराध तो नही किया तब उनकी पुत्री ने छिद्रों में काँटे घुसाने वाली बात राजा को बता दी। 

        राजा शर्याति अपनी पुत्री के साथ उस स्थान पर पहुँचे जहाँ च्यवन मुनि तपस्या कर रहे थे। आँखों में काँटे गड़ जाने के कारण च्यवन ऋषि अन्धे हो गये थे और उनकी आँखों से रूधिर बह रहा था। अपने अन्धे हो जाने के कारण वे बड़े क्रोध में थे। राजा शर्याति ने तत्काल च्यवन ऋषि से अतिशय दीनता के साथ क्षमायाचना की। च्यवन ऋषि बोले कि राजन्! तुम्हारी कन्या ने मुझे अंधा किया है। यदि तुम्हारी कन्या मेरे साथ विवाह करके मेरी सेवा की जिम्मेदारी ले तो मैं सबको शाप से मुक्त कर दूँगा। सुकन्या च्यवन ऋषि से विवाह के लिए तैयार हो गई और इस प्रकार सुकन्या का विवाह च्यवन ऋषि से सम्पन्न हो गया।

         विवाह के पश्चात सुकन्या पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए च्यवन ऋषि की सेवा करने लगी। एक दिन देवताओं के वैद्य  अश्‍वनीकुमार च्यवन ऋषि के आश्रम के पास से गुजरे। अश्‍वनीकुमारों ने सुकन्या को अन्धे च्यवन ऋषि की सेवा करते हुये देखा तो वह रूक कर उनके पास पहुँच गए। सुकन्या ने उनका आदर-सत्कार के साथ स्वागत एवं पूजन करके आतिथ्य किया। सुकन्या की सेवा श्रुता और पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर अश्विनीकुमार उनके पति को आँखों में पुनः दीप्ति प्रदान करने के लिए अपने साथ ले गए। च्यवन ऋषि हजारों वर्षों तक तपस्या में लीन रहे थे और वृद्धावस्था में पहुँच गए थे। अश्विनीकुमारों ने उन्हें एक औषधि दी जिसके सेवन से च्यवन ऋषि ने अश्विनी कुमारों की तरह ही यौवनावस्था को पा लिया। जब अश्विनीकुमार ऋषि को साथ लेकर सुकन्या के वापस आए तो वो तीनों लोग एक समान ही लग रहे थे। अश्विनीकुमारों ने सुकन्या से अपने पति को पहचान कर अपने साथ ले जाने के लिए कहा। तीनों में से च्यवन ऋषि को पहचानना बहुत कठिन हो रहा था क्योकि उनका रूप-रंग, आकृति आदि बिल्कुल अश्‍वनीकुमारों जैसा हो गया था लेकिन सुकन्या ने अपने पतिव्रत धर्म की सहायता ले अपने पति को पहचान लिया। अश्विनीकुमार सुकन्या के पतिव्रत धर्म और बुद्धि से प्रसन्न होकर आशीर्वाद देकर चले गए। 

च्यवन ऋषि को पहचानने का प्रयास करती हुई सुकन्या


           वापस आने के बाद च्यवन ऋषि ने राजा शर्याति से यज्ञ सामग्री एकत्र करवाई और उन्हें यज्ञ में दीक्षा देकर यज्ञ आरम्भ किया। इस यज्ञ में सभी देवताओं का अह्वान करके सब को यज्ञ का भाग दिया गया। उस समय तक अश्विनीकुमारों को यज्ञ का भाग लेने की पात्रता नही थी। ऋषि च्यवन ने अश्विनीकुमारों को भी यज्ञ का भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। इस बात से देवताओं के राजा इन्द्र रूष्ट हो गए और उन्होने च्यवन ऋषि को अश्विनीकुमारों को यज्ञ भाग देने से रोका क्योकि अश्विनीकुमार देवताओं के वैद्य थे और उन्हें यज्ञ में और देवता के साथ स्थान ग्रहण करने के योग्य नही माना जाता था। च्यवन ऋषि ने देवराज इन्द्र की बात को अनसुना करके अश्विनीकुमारों को सोमरस देना प्रारम्भ किया तो इन्द्र ने क्रोध में अपना वज्र ऋषि की तरफ छोड़ दिया। महर्षि च्यवन ने वज्र को बीच में ही रोक दिया और अपने तपोबल से एक राक्षस उत्पन्न करके देवराज इन्द्र के पीछे लगा दिया। तब देवताओं के राजा इन्द्रदेव ने अश्विनीकुमारों को यज्ञ का भाग देने की पात्रता को स्वीकार कर लिया। तब जाकर च्यवन ऋषि ने अपने द्वारा उत्पन्न राक्षस को भस्म कर दिया। इस प्रकार उन्होने अश्विनीकुमारों को अपने ऊपर किए गए उपकार के बदले प्रति-उपकार स्वरूप यज्ञ भाग के लिए पात्रता दिलवाई। 

च्यवन ऋषि अश्विनीकुमारों को सोमरस देते हुए

        च्यवन ऋषि द्वारा अश्विनीकुमारों से सीखी हुई इस औषधि को उनके ही नाम च्यवन से 'च्यवनप्राश' नाम दिया गया। आज बहुत सारी कम्पनियां 'च्यवनप्राश' के नाम पर अपने उत्पाद बेचकर यौवन जैसी चुस्ती प्रदान करने का दावा करती हैं। वैसे तो कई वैज्ञानिक इंसान को यौवन अवस्था में रखने की विधि खोजने में लगे हुए हैं लेकिन असली 'च्यवनप्राश' औषधि के आस पास भी उनकी खोज नही पहुँच पाई है। 

यह कहानी क्यों है प्रेरणादायक 

       सुकन्या से अनजाने में अपराध हुआ था लेकिन उन्होने न सिर्फ अपने अपराध को स्वीकार किया बल्कि उस अपराध के लिए च्यवन ऋषि के निर्णय को भी सहर्ष स्वीकार किया। आज कल लोग अपने द्वारा किए गए अपराध को स्वीकार करने की हिम्मत नही दिखा पाते और अपना अपराध दूसरे के मत्थे मड़ने का प्रयास करते हैं। 

       सुकन्या का विवाह विपरीत परिस्थिति में एक वृद्ध ऋषि से होने पर भी उन्होने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए पतिव्रत धर्म निभाया। आज के परिप्रेक्ष्य में हम देखते हैं कि बहुत सी लड़कियां इच्छानुसार विवाह न होने पर अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वहन नही करती हैं जो ग्रहक्लेष का कारण बनता है और परिवार को विभक्त करा देता है। 

       च्यवन ऋषि ने अपने ऊपर किए गए उपकार के बदले देवराज इन्द्र के क्रोध का सामना करते हुए भी प्रतिउपकार स्वरूप अश्विनीकुमारों को यज्ञ भाग दिया। आज के समय में हमारे ऊपर यदि कोई उपकार करता है या विपरीत परिस्थिति में हमारी सहायता करता है तो हम उसकी विपरीत परिस्थिति में प्रति-उपकार करने से इस भय से पीछे हट जाते हैं कि कही हम पर कोई विपदा ना आ जाए। 

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Shree Gangasagar

नमस्कार दोस्तों, मेरा नाम है सत्येंद्र सिंह founder of ShreeGangasagar.com

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