मैं और मेरा एक मित्र, जब बचपन में एग्जाम देकर आते थे तो अपने अपने expected मार्क्स मेरे रूम की दीवार पर लिख देते थे।
मार्क्स कैलकुलेट करने में हम लोग अपने expectation को बिल्कुल low level पर ले जाते थे। कोई सवाल आता ही नहीं था, कोई आते आते गलत हो गया था, तो किसी में ऐसा doubt रहता था कि उसके नंबर भी नही जोड़ते थे।
हमारे इस वैल्यूएशन ने कभी भी हमें दुःखी नहीं होने दिया। जितने भी मार्क्स हमारे दीवार पर लिखे होते थे रिजल्ट में हमेशा उससे बेहतर ही आते थे। इसके अलावा दूसरों के मार्क्स से ज्यादा कुछ लेना देना नही होता था। मतलब दिल से खुश रहते थे हम लोग।
हमारे जीवन में भी यही है। अगर हम अपनी उम्मीदों को कम कर दें तो छोटी छोटी खुशियों का भी आनंद ले सकते हैं।
उम्मीदों या अपेक्षाओं को पूरी तरह खत्म करना तो मुश्किल है। ये दिमाग अपने आप उम्मीदें पाल लेता है।
जैसे अगर बर्थडे है तो अपेक्षा रहेगी की वो "स्पेशल वन" रात में 12 बजे बर्थ डे विश करेगा। हो सकता है कि उस "स्पेशल वन" को आपका जन्मदिन याद ही न हो।
आप 12 से 1 बजे तक रात में इंतजार ही कर रहे हैं। हालाकि दूसरे लोगों ने आपको विश किया है लेकिन जिसकी उम्मीद थी उसका फोन नही आया।
हो सकता है उसको सुबह फेसबुक से देख कर याद आए और जब तक वो विश करे आपका दिन खराब हो चुका होगा।
यह सिर्फ एक उदाहरण है.... ऐसे सैकड़ों दे सकता हूं लेकिन मुद्दा ये है कि हम अपनी अपेक्षाओं और उम्मीदों को काबू कैसे करें?
"आप खुद को दूसरों के लिए महत्वपूर्ण बनने के लिए कुछ मत करो, बल्कि उनको महत्पूर्ण मानकर करो।"
जब ये दिल से करने लगोगे तो आप उन छोटी छोटी खुशियों का आनंद ले पाओगे जो उम्मीदें बाधने पर छूट जाती हैं ।